तंत्र अपनी कमियों को स्वीकार कर विजय प्राप्त करने की ही क्रिया है , यह प्रकृति,यह तारा मण्डल,मनुष्य का संबंध,चरित्र,विचार,भावनाये सब कुछ तो तंत्र से ही चल रहा है;जिसे हम जीवन तंत्र कहेते है॰जीवन मे कोई घटना आपको सूचना देकर नहीं आता है,क्योके सामान्य व्यक्ति मे इतना अधिक सामर्थ्य नहीं होता है के वह काल के गति को पहेचान सके,भविष्य का उसको ज्ञान हो,समय चक्र उसके अधीन हो ये बाते संभव ही नहीं,इसलिये हमे तंत्र की शक्ति को समजना आवश्यक है यही इस ब्लॉग का उद्देश्य है.
Saturday, 8 July 2017
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-:गुरु स्तुति:-
-:गुरु स्तुति:- “गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः। गुरू साक्षात परंब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥ अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं ...
-
~ रत्न- / यंत्र प्राण-प्रतिष्ठा विधि ~ ~ रत्न / यंत्र - प्राण - प्रतिष्ठा विधि : वैसे तो हमारे वेदों में ...
-
छत्तीस यक्षिणीयाँ ।। सर्वेषां यक्षिणीनां तु ध्यान कुर्यात्समाहितः। भगिनी मातृ, पुत्री स्त्री रूप तुल्य यथोप्सितम्।। 1।। भोज्य निरामिषे...
-
विधान – मूलतः ये साधना मिश्रडामर तंत्र से सम्बंधित है. अमावस्या की मध्य रात्रि का प्रयोग इसमें होता है,अर्थात रात्रि के ११.३०...
No comments:
Post a Comment