Wednesday 15 April 2020

-:गुरु स्तुति:-

-:गुरु स्तुति:-

“गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरू साक्षात परंब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरूवे नमः॥

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया।
चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्री गुरूवे नमः॥

स्थावरं जंगमं व्याप्तं यत्किञ्चित् सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरूवे नमः॥

चिन्मयं व्यापितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥

सर्वश्रुति शिरोरत्न विराजित पदाम्बुजः।
वेदान्ताम्बुज सूर्याय तस्मै श्री गुरवे नमः॥

चैतन्य शाश्वतं शान्तं व्योमातीतं निञ्जनः।
बिन्दु नाद कलातीतःतस्मै श्री गुरवे नमः॥

ज्ञानशक्ति समारूढःतत्त्व माला विभूषितम्।
भुक्ति मुक्ति प्रदाता च तस्मै श्री गुरवे नमः॥

अनेक जन्म सम्प्राप्त कर्म बन्ध विदाहिने।
आत्मज्ञान प्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः॥

शोषणं भव सिन्धोश्च ज्ञापनं सार संपदः।
गुरोर्पादोदकं सम्यक् तस्मै श्री गुरवे नमः॥

न गुरोरधिकं त्तत्वं न गुरोरधिकं तपः।
तत्त्व ज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्री गुरवे नमः॥

ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोर्पदम् ।
मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोर्कृपा॥

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं।
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्षयम्॥

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद् गुरूं तन्नमामि॥

ध्यानं सत्यं पूजा सत्यं सत्यं देवो निरञ्जनम्।
गुरिर्वाक्यं सदा सत्यं सत्यं देवउमापतिः॥”

Tuesday 6 February 2018

धनाभाव और भगवती पीताम्बरा

धनाभाव व भगवती पीताम्बरा

मेरे यजमान की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, वह हर समय पैसों के अभाव में परेशान रहता था। उसके लिए अनुष्ठान करने का मन बना लिया, अब कोई ऐसा अनुष्ठान कंरू, जिससे उसे तुरन्त राहत मिलने लगे, बिना भगवती के प्रसन्न हुए यह सम्भव नहीं था, अतः भगवती बगला की प्रसन्नता एवं धन लाभ हेतु बगला शतनाम के पाठ व हवन का संकल्प लिया।

बगला शतनाम के एक सौ आठ माला पाठ कर, हवन कर दिया। परिणाम तुरन्त सामने आया यजमान की आर्थिक स्थिति में जबरदस्त सुधान प्रारम्भ हो गया।

क्रिया इस प्रकार की गई - विष्णुयामल से उद्धत है-

विनियोग -

 ऊँ अस्य श्री पीताम्वर्य अण्ठोन्तर शतनाम स्त्रोतस्य सदा शिव ऋषि, अनुष्टुप छन्दः श्री पीताम्बरी देवता श्री पीताम्बरी जपे हवन विनियोगः।

(जल पृथवी पर डाल दें)

1. ऊँ बगलाये नमः स्वाहा।
2. ऊँ विष्णु विनिताये नमः स्वाहा।
3. ऊँ विष्णु शंकर भामनी नमः स्वाहा।
4. ऊँ बहुला नमः स्वाहा।
5. ऊँ वेदमाता नमः स्वाहा।
6. ऊँ महा विष्णु प्रसूरपि नमः स्वाहा।
7. ऊँ महा-मत्स्या नमः स्वाहा।
8. ऊँ महा-कूर्मा नमः स्वाहा।
9. ऊँ महा-वाराह-रूपिणी नमः स्वाहा।
10. ऊँ नरसिंह-प्रिया रम्या नमः स्वाहा।
11. ऊँ वामना वटु-रूपिणी नमः स्वाहा।
12. ऊँ जामदग्न्य-स्वरूपा नमः स्वाहा।
13. ऊँ रामा राम-प्रपूजिता नमः स्वाहा।
14. ऊँ कृष्णा नमः स्वाहा।
15. ऊँ कपर्दिनी नमः स्वाहा।
16. ऊँ कृत्या नमः स्वाहा।
17. ऊँ कलहा नमः स्वाहा।
18. ऊँ कलविकारिणी नमः स्वाहा।
19. ऊँ बुद्धिरूपा नमः स्वाहा।
20. ऊँ बुद्धि-भार्या नमः स्वाहा।
21. ऊँ बौद्ध-पाखण्ड- खण्डिनी नमः स्वाहा।
22. ऊँ कल्कि-रूपा नमः स्वाहा।
23. ऊँ कलि-हरा नमः स्वाहा।
24. ऊँ कलि-दुर्गति-नाशिनी नमः स्वाहा।
25. ऊँ कोटि-सूर्य-प्रतीकाशा नमः स्वाहा।
26. ऊँ कोटि-कन्दर्प-मोहिनी नमः स्वाहा।
27. ऊँ केवला नमः स्वाहा।
28. ऊँ कठिना नमः स्वाहा।
29. ऊँ काली नमः स्वाहा।
30. ऊँ कला कैवल्य-दायिनी नमः स्वाहा।
31. ऊँ केश्वी नमः स्वाहा।
32. ऊँ केश्वाराध्या नमः स्वाहा।
33. ऊँ किशोरी नमः स्वाहा।
34. ऊँ केशव-स्तुता नमः स्वाहा।
35. ऊँ रूद्र-रूपा नमः स्वाहा।
36. ऊँ रूद्र-मूर्ति नमः स्वाहा।
37. ऊँ रूद्राणी नमः स्वाहा।
38. ऊँ रूद्र-देवता नमः स्वाहा।
39. ऊँ नक्षत्र-रूपा नमः स्वाहा।
40. ऊँ नक्षत्रा नमः स्वाहा।
41. ऊँ नक्षत्रेश-प्रपूजिता नमः स्वाहा।
42. ऊँ नक्षत्रेश-प्रिया नमः स्वाहा।
43. ऊँ नित्या नमः स्वाहा।
44. ऊँ नक्षत्र-पति-वन्दिता नमः स्वाहा।
45. ऊँ नागिनी नमः स्वाहा।
46. ऊँ नाग-जननी नमः स्वाहा।
47. ऊँ नाग-राज-प्रवन्दिता नमः स्वाहा।
48. ऊँ नागेश्वरी नमः स्वाहा।
49. ऊँ नाग-कन्या नमः स्वाहा।
50. ऊँ नागरी नमः स्वाहा।
51. ऊँ नगात्मजा नमः स्वाहा।
52. ऊँ नगाधिराज-तनया नमः स्वाहा।
53. ऊँ नाग-राज-प्रपूजिता नमः स्वाहा।
54. ऊँ नवीना नमः स्वाहा।
55. ऊँ नीरदा नमः स्वाहा।
56. ऊँ पीता नमः स्वाहा।
57. ऊँ श्यामा नमः स्वाहा।
58. ऊँ सौन्दर्य-करिणी नमः स्वाहा।
59. ऊँ रक्ता नमः स्वाहा।
60. ऊँ नीला नमः स्वाहा।
61. ऊँ घना नमः स्वाहा।
62. ऊँ शुभ्रा नमः स्वाहा।
63. ऊँ श्वेता नमः स्वाहा।
64. ऊँ सौभाग्या नमः स्वाहा।
65. ऊँ सुन्दरी नमः स्वाहा।
66. ऊँ सौभगा नमः स्वाहा।
67. ऊँ सौम्या नमः स्वाहा।
68. ऊँ स्वर्णभा नमः स्वाहा।
69. ऊँ स्वर्गति-प्रदा नमः स्वाहा।
70. ऊँ रिपु-त्रास-करी नमः स्वाहा।
71. ऊँ रेखा नमः स्वाहा।
72. ऊँ शत्रु-संहार-कारिणी नमः स्वाहा।
73. ऊँ भामिनी नमः स्वाहा।
74. ऊँ तथा माया नमः स्वाहा।
75. ऊँ स्तम्भिनी नमः स्वाहा।
76. ऊँ मोहिनी नमः स्वाहा।
77. ऊँ राग-ध्वंस-करी नमः स्वाहा।
78. ऊँ रात्री नमः स्वाहा।
79. ऊँ शैख-ध्वंस-कारिणी नमः स्वाहा।
80. ऊँ यक्षिणी नमः स्वाहा।
81. ऊँ सिद्ध-निवहा नमः स्वाहा।
82. ऊँ सिद्धेशा नमः स्वाहा।
83. ऊँ सिद्धि-रूपिणी नमः स्वाहा।
84. ऊँ लकां-पति-ध्ंवस-करी नमः स्वाहा।
85. ऊँ लंकेश-रिपु-वन्दिता नमः स्वाहा।
86. ऊँ लंका-नाथ-कुल-हरा नमः स्वाहा।
87. ऊँ महा-रावण-हारिणी नमः स्वाहा।
88. ऊँ देव-दानव-सिद्धौध-पूजिता नमः स्वाहा।
89. ऊँ परमेश्वरी नमः स्वाहा।
90. ऊँ पराणु-रूपा नमः स्वाहा।
91. ऊँ परमा नमः स्वाहा।
92. ऊँ पर-तन्त्र-विनाशनी नमः स्वाहा।
93. ऊँ वरदा नमः स्वाहा।
94. ऊँ वदराऽऽराध्या नमः स्वाहा।
95. ऊँ वर-दान-परायणा नमः स्वाहा।
96. ऊँ वर-देश-प्रिया-वीरा नमः स्वाहा।
97. ऊँ वीर-भूषण-भूषिता नमः स्वाहा।
98. ऊँ वसुदा नमः स्वाहा।
99. ऊँ वहुदा नमः स्वाहा।
100. ऊँ वाणी नमः स्वाहा।
101. ऊँ ब्रह्म-रूपा नमः स्वाहा।
102. ऊँ वरानना नमः स्वाहा।
103. ऊँ वलदा नमः स्वाहा।
104. ऊँ पीत-वसना नमः स्वाहा।
105. ऊँ पीत-भूषण-भूषिता नमः स्वाहा।
106. ऊँ पीत-पुष्प-प्रिया नमः स्वाहा।
107. ऊँ पीत-हारा नमः स्वाहा।
108. ऊँ पीत-स्वरूपिणी नमः स्वाहा।

हवन सामग्री:-

शक्कर का बूरा  - 2 किलो0
काला तिल   - 2 किलो
कमल बीज  - 200 ग्राम
शहद   - 100 ग्राम
देशी घी          -  200 ग्राम
नमक   - 10 ग्राम

-निर्देश -----

1. पहले 10 माला का हवन यानी दस हजार आहुतियाँ देकर प्रतिदिन छत्तीस दिनों तक एक माला हवन यानी एक सौ आहुतियाँ देते रहने से आर्थिक स्थिति में जबर्दस्त सुधार हो जाता है।

2. इस शतनाम हवन के प्रयोग से भगवती की प्रसन्नता साधक के प्रति बढ़ जाती है, जिससे साधक के प्रत्येक कार्य सुगमता-पूर्वक होने लगते हैं व विपक्षियों की उल्टी गिनती प्रारम्भ हो जाती है।

3. हवन कर अग्नि विसर्जन कर दें -

 हे अग्नि देव अब आप अपने लोक में प्रस्थान करें व हमारे द्वारा दी गई आहुतियाँ सम्बन्धित देवी/देवताओं को पहुँचा दें, कह कर हवन की अग्नि पर तीन बार जल डाल दें।

Friday 18 August 2017

रत्न- / यंत्र प्राण-प्रतिष्ठा विधि ~

~ रत्न- / यंत्र प्राण-प्रतिष्ठा विधि ~

रत्न / यंत्र -प्राण-प्रतिष्ठा विधि :
      वैसे तो हमारे वेदों में / शाश्त्रों में किसी भी रत्नया यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा की जो विधियां बतायी गयीहै वो थोडा सामान्य व्यक्ति हेतु क्लिष्ट सा प्रतीतहोती है , परन्तु जहाँ तक मैंने अपने जीवन मेंअनुभव में पाया है की यदि निचे बताये गए विधिअनुशार भी यदि पूर्ण श्रधा एवं आस्था के साथअनुकरण किया जाए तो इसके परिणाम में कोईविशेष अंतर नहीं रहता है ! अतः आज जन-कल्याण हेतु यह अति गोपनीय रहश्य काउद्भावना मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ , आशा है की यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगी -
सर्वप्रथम , अपने रत्न / यंत्र को लेकर किसी उचाई पर या किसी आसन पर रखलें ! फिर हाथ में जल , अक्षत और पुष्प लेकर निम्न मन्त्र पढ़ें -
 अद्य श्री ब्राह्मणों द्वितीये परार्धे श्रीश्वेत्वाराह्कल्पे वैवस्त्मन्वन्तरेअष्टाविनशतितमें कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखंडे भारतवर्षेबौधावतारे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यक्षेत्रे .....................( स्थान का नाम), ....................( संवत्सर का नाम ) संवत्सरे , ..........................( हिंदीमहीने का नाम ) मासे , ........................( शुक्ल / कृष्ण पक्ष का नाम ) पक्षे , .......................( तिथि का नाम ) तिथौ , ....................( वार का नाम जैसेसोमवार इत्यादि ) वासरे मम ............................( अपना नाम ) आत्मनःश्रुतिस्मृति - पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं .....................( यंत्र / रत्न का नाम )यंत्रस्य / रत्नस्य ताडनावघातादी - दोष्परिहार्थं धूपोतारण पूर्वकं प्राणप्रतिष्ठाकरिष्ये !
यह बोलकर किसी पात्र में उन्हें ( इस जल , अक्षत एवं फूल को ) छोड़ दें ! इसके बाद त्न / यंत्र पर शुद्ध घी लगा दें , फिर दूध और जल मिलाकर उससेस्नान कराएं साथ ही यंत्र / रत्न का इष्ट मन्त्र  ( प्रत्येक  रत्न  के  लिए  इष्ट  मन्त्र  हमारे  इसी ब्लॉग  पर  उपलब्ध  है  ) बोलते रहें !
फिर विनियोग करें ( अर्थात हाथ में सिर्फ जल लेकर निम्न मन्त्र पढ़ कर किसीपात्र में इस जल को छोड़ देना है ) -
 अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मा-विष्णु-रुद्रा ऋषयः ऋग्यजुर्सामानीछन्दांसी प्राणशक्तिर्देवता आं बीजं ह्रीं शक्तिः क्रों कीलकं अस्मिन रत्ने / यंत्रे श्री ......................( रत्न या यंत्र का नाम ) प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः !
इसके बाद रत्न / यंत्र को एक हाथ में लेकर तथा दुसरे हाथ में दूर्वा या कुशलेकर निम्न मन्त्र बोलते हुए रत्न / यंत्र पर चलाते रहें ---
 आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों  क्षं सं हं सः ह्रीं  आं ह्रीं क्रों अस्यरत्नस्य / यंत्रस्य श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्नस्य / यंत्रस्य प्राणाइह प्राणाः !
 आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों  क्षं सं हं सः ह्रीं  आं ह्रीं क्रों अस्यरत्नस्य / यंत्रस्य श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्नस्य / यंत्रस्य जीवइह स्थितः !
 आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों  क्षं सं हं सः ह्रीं  आं ह्रीं क्रों अस्यरत्नस्य / यंत्रस्य श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्नस्य / यंत्रस्यसर्वेंद्रियानी वांड-मनस्त्वकचक्षुश्रोत्रजिह्वा-घ्राण-प्राणा इहागत्य इहैव सुखंचिरं तिष्ठन्तु स्वाहा !
 मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्टम यज्ञं समिमंदधातु ! विश्वे देवास इह मादयन्ताम  प्रतिष्ठ !!
एष वै प्रतिष्ठा नाम यज्ञो यत्र तेन यज्ञेन यजन्ते ! सर्वमेव प्रतिष्ठितं भवति !!
अस्मिन रत्ने / यंत्रे श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्ने / यंत्रे यन्त्र देवतारत्न देवता श्री .............( रत्न / यंत्र देवता का नाम ) सुप्रतिष्ठता वरदाभवन्तु !
फिर गंध , पुष्पादि से पंचोपचार ( स्नान , चन्दन , पुष्प , धूपदीप , नैवेद्य एवंआरती ) पूजन करें और यंत्र के षोडश संस्कारों की सिद्धि के लिए 16 बार इष्टमन्त्र का जप करें -
 आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं  हंसः सोऽहं सोऽहं हंसः शिवः अस्यरत्नस्य / यंत्रस्य श्री .................( रत्न / यंत्र का नाम ) रत्नस्य / यंत्रस्य प्राणाइह प्राणाः ! 
 ऐं ह्रीं श्रीं आं ह्रीं क्रों अस्य रत्नस्य / यंत्रस्य श्री .................( रत्न / यंत्र कानाम ) रत्नस्य / यंत्रस्य जीव इह स्थितः ! सर्वेंद्रियानी वांड-मनस्त्वकचक्षुश्रोत्रजिह्वा-घ्राण-प्राणा इहागत्य इहैव सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा !
 ऐं ह्रीं श्रीं  असुनीते पुनरस्मासु चक्षु : पुनः प्राणमिह नो धेहि भोगम ! ज्योक पश्येम सूर्यमुच्चरन्तमनुमते मृडया नः स्वस्ति !!
फिर 
अस्य रत्नस्य / यंत्रस्य षोडश संस्काराः सम्पद्यन्ताम !!
इस मन्त्र को बोलकर ' यंत्र / रत्न में प्राण , जीव , वाणी , मन , त्वचा , नेत्र , कर्ण , जिह्वा , नासिका आदि सभी इन्द्रियां निवास कर रही है और यह यंत्र / रत्नसाक्षात भगवत्स्वरूप हो गया है ' ऐसा मानकर रत्न / यंत्र
को यदि संभव हो सके तो ***षोडशोपचार पूजन कर लें ! 
अंत में उस रत्न से सम्बंधित किसी एक मन्त्र का कम से कम 108 बार जाप करउस रत्न को निर्देशित उंगली या गले में धारण कर लें ! इसके बाद अपने सभीइष्ट देवता , ग्राम देवता , गृह देवता तथा घर में उपस्थित सभी बुजुर्ग को प्रणामकर आशीर्वाद ग्रहण कर लें ! 
*** इसकी विधि संभवतः जल्द ही लिखने  प्रयत्न करूंगा वैसे आप किसीनजदीकी ब्रह्मण से संपर्क क्र इसकी जानकारी ले सकते हैं ! 
नोट :   प्राण - प्रतिष्ठा प्रारंभ करने से पहले पूजन में प्रयोग होने वाले सामग्री काभी जिक्र कर देना मैं उचित समझता हूँ !
सामग्री :
गंगा जल / शुद्ध ताज़ा जल
अक्षत
पुष्प
दीपक
घी ( गाय का )
धूप / धूप बत्ती
कच्चा दूध ( गाय का )
दही ( गाय के दूध का )
मधु
१०-शर्करा
११रोली चन्दन , सिन्दूर , चन्दन
१२छोटा सा वस्त्र का टुकड़ा
१३आसन ( स्वयं के लिए एवं रत्न / यंत्र के लिए )
१४दुर्वा एवं कुशा
१५सुगन्धित द्रव्य ( इत्र )
१६बड़ा सा पात्र - /
१७नैवेद्य - ५० ग्राम
१८फल - /
१९पान पत्ता - 
२०सुपाड़ी -
२१कपूर ( आरती के लिए )
उपरोक्त सामग्री षोडशोपचार पूजन एवं मात्र एक रत्न / यंत्र हेतु है )

-:गुरु स्तुति:-

-:गुरु स्तुति:- “गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः। गुरू साक्षात परंब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥ अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं ...