Wednesday 9 August 2017

अपना ग्रह दोष स्वयं पहचाने और उपाय करें

यह उन लोगों के लिए नहीं है, जो ज्योतिष पर विश्वास नहीं करते। भाग्य और पुरुषार्थ का एक – दूसरे से सम्बन्ध होता है। इन दोनों में से अकेले-अकेले कोई फलित नहीं होता; यही वैज्ञानिक सत्य है। कर्मफल दर्शन का सत्य सापेक्ष है। एक ही वृक्ष के तीन बीज तीन अलग-अलग परिस्थितियों स्थानों पर उत्पन्न होते है; यह भाग्य है और अपनी परिस्थियों में जिन्दा रहने का संघर्ष पुरुषार्थ। यह एक जटिल विषय है और इस पर मैं कोई बहस नहीं चाहता। जिसे मानना है, मने; न मानना है;न माने। मेरा उद्देश्य किसी विषय पर मत का प्रचार करना नहीं है। ये सामान्य लक्षण और उपाय है; तत्काल राहत के लिए।

 

सूर्य विकार   – यह दो प्रकार से होता है। एक में यह बाधित हो जाता है, दूसरे में प्रखर।

 

पहले में आँखों में पानी, सोते समय मुंह से लार गिरना, निवास में सूर्य की रोशनी बाधित होना, नमक खाने की इच्छा तेज हो जाना आदि लक्षण प्रकट होते है। इसमें मन सुस्त रहता है।

 

 

उपाय – तुलसी में जल दें और पांच पत्ते प्रतिदिन सुबह पांच काली मिर्च के साथ चबा कर पानी पियें। घर में, शरीर पर , ऑफिस में ताम्बा धारण करें। ताम्बे के पात्र में रखा जल पीयें। मदार की माला या बाजूबंद पहने।

 

दूसरे में क्रोध अधिक आता है, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, अति तीव्रता , घर में धुप की प्रखरता, नेत्रों में गर्मी, शरीर में गर्मी, कलह, झगड़े, विवाद होते हैं। अधिक नमक पसंद नहीं होता। बन्दर का उपद्रव होता है।

  

उपाय – शिव का मंत्र जपें। शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। तीन पत्तों वाले तीन बेल पत्र का सेवन करें। चाँदी पहने, घर में चाँदी स्थापित करें। सिरहाने में पानी रखें। दक्षिण का दरवाजा और उत्तर सिर करके सोना अशुभ है। गर्म पदार्थ मसाले आदि का सेवन न करें। कोल्ड ड्रिंक और फास्टफूड न लें। स्फटिक का माला पहने। चाँदी के मनकों एवं मोती की माला भी प्रशस्त है।

 

चन्द्रमा विकार

 यह भी दो प्रकार से विकृत होता है।

पहले में  जल स्रोत सूखते है, पम्प खराब होता है, सुस्ती रहती है, बहुत नींद आती है। शरीर या  हाथ-पैर ठंडे रहते है। चाँदी गुम  होता है। माता बीमार पड़ती है। दूध पिने की इच्छा होती है। मानसिक तनाव, चिंता, शोक होता है। आमदनी घटती है।

 

उपाय –  सूर्य के दूसरे हिस्से का उपाय करें।

 

दूसरे में छत टपकता है, बाढ़ आती है, घर में पानी के नलके की टोंटी टूटती है, पानी नियंत्रित नहीं होता, बिमारी आदि पर निरर्थक व्यय होता है। रक्त विकार और फेफड़े का विकार होता है। दूध बिखरता है। माता शोक में पड़ती है।

 

उपाय  –  दूर्गा जी के मन्त्र का जप करें। कन्या भोजन करायें। छत-नलका आदि ठीक काराएं। पानी-दूध की क्षति को रोकें। मन्दिर में सफ़ेद कपडे, दूध या चाँदी दान करें। आज्ञा चक्र पर ध्यान केन्द्रित करें। सोना पहने। प्राणायाम करें। हल्दी की माला पहने और आज्ञा चक्र पर तिलक लगायें।

 

 

मंगल विकार

      यह भी दो प्रकार से बाधित होता है –

 

पहले में आलस्य, क्षुब्धता, तनाव, खींज से भरा क्रोध, दांत किटकीटाना, गुस्से में सामान तोड़ देना, अपशब्द बकना, मार-पीत, कलह, ईर्ष्या, आत्मा को जला देने वाले ईर्ष्या से भरेवचन, विवाद में पराजय, पुलिस या अपराधियों का भय होता है।

 

उपाय  – हनुमान जी की पूजा करें, मन्त्र जपें, प्राणायाम करें। लाल कपडे, मूंगा, ताम्बा प्रयुक्त करें।  लाल रक्त कणों को बढ़ाने वाले भोजन अक्रें। घर में एक ताम्बे के पात्र में सिन्दूर और कुमकुम भर कर रखें। सूर्या नमस्कार करें। प्रातः कालीन सूर्या का ध्यान लगाना शुभ होगा। मूंगे की माला पहने। मीठा  खाएं (गुड/शहद)।

 

दूसरे में आक्रामक क्रोध, मारपीट कर लेना, गन्दी गालियाँ बकना, क्रूरता की हद तक किसी पर बल प्रयोग कर देना, हाई ब्लड प्रेशर, सिर-नेत्र – शरीर में गर्मी, अत्यधिक कामभाव और जीवन साथी को शारीरिक-मानसिक यंत्रणा देना होता है।

उपाय  – सूर्य में दिए दूसरे हिस्से का उपाय करें।

 

बुध विकार – यह भी दो प्रकार से बाधित होता है-

पहले में गला फँसना, आवाज़ खराब होना, शरीर में बिमारी, शिक्षा में व्यवधान, लड़की की तरफ से (बहन-बुआ भी) परेशानी, प्रेम सम्बन्ध में बाधा, किताब के पन्ने फटना, आवाज वाले एल्क्ट्रोनिक इंस्ट्रूमेंट का खराब होना, आदि लक्षण प्रकट होते है।

उपाय – दूर्गा जी के मंत्र का जप करें। कन्या भोजन करायें। लड़कियों को मीठा खिलायें। पन्ना पहने। हरा कपड़ा और हरे मनकों की माला पहने। अपामार्ग के भस्म का सेवन करें ।

 

दूसरे में बहुत बोलना, मीन-मेख निकालना, कटु बोलना, जल्दीबाजी में निर्णय लेना, दूसरों को अपनी बातों से मोड़कर अपना काम निकालने की प्रवृत्ति, अपनी बुद्धि का अतिरिक्त दावा, पीता से कलह; नास्तिकता, साधू-पंडित-देवी-देवता-परम्परा का मजाक उडाना, बुद्धिवाद का अहंकार आदि प्रगट होते हैं।

उपाय – उपाय बृहस्पति का है। ‘ॐ मन्त्र’, गणेश या रूद्र देवता, आज्ञाचक्र ध्यान केंद्र और बुजुर्गों का सम्मान-सलाह लेना- आशीर्वाद लेना, पीपल में जल चढ़ाना आदि अहि। म्न्दरी में जाना , 15 मिनट रहना। सोना पहनना शुभ है। गंडे-ताबीज-खाली बर्त्तन-बहुत तेज आवाज वाले यंत्र, ढोल-करताल-हरमुनियम बजाना , मंदिर में घंटी बजाना, घर में घंटी लटकाना बहुत अशुभ है। माला हल्दी एवं रुद्राक्ष की पहने।

 

बृहस्पति विकार  

पहले में श्वांस की बिमारी, श्वांस कष्ट, उत्साह में कमी, आत्मबल में कमी, पिता से सम्बन्ध टूटना, गैस्टिक, वाट का दर्द, शरीर की त्वचा का ड्राई होना, सिर दर्द, निर्णय में अनिश्चितता , रात की नींद बाधित, चिंता-शोक आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

उपाय  – बुध दूसरे का उपाय करें।

दूसरे में अत्यधिक अहंकार, जिद, अपने सामने किसी की न सुनना, परम्पराओं के प्रति कट्टरता, लड़कियों के प्रति निष्ठुरता, पुत्र के प्रति क्रोध और उपेक्षा, स्त्रियों से बैर, जिद में काम खराब होना आदि लक्षण प्रकट होते है।

उपाय – मंदिर में बेसन के लड्डू एवं काला जूता-सफेद धोती कुर्ता- पुजारी को दान दें। शनि की उन्गाकियों में लोहे का छल्ला पहने या कलाई में फौलादी कड़ा। रुद्राक्ष माला प्रशस्त है। ‘ॐ’ का जप करें।

शुक्रवार

पहले प्रकार में शरीर क्षीण होता है, धातुविकार, कामुकता, पेट का बढ़ना, शरीर में दर्द, पत्नी को दुःख, संचित धन की हानि, खेतीवाली जमीं का बिकना, नामर्दी, सेक्स की कमजोरी आदि उत्पन्न होते है। भूख न लगना, कब्ज, पाचन शक्ति की कमजोरी, गर्भाशय विकार, लिकोरिया, धातुपतन भी इसके लक्षण है।

उपाय – शुक्रवर्द्धक आयुर्वेदिक दवाएं प्रयुक्त करें। बरगद में पानी देकर उसकी जड़ की मिट्टी का तिलक लगायें, हीरा या पन्ना पहने; घर में कुछ फर्श कच्ची रखें या गमले में मिट्टी रखकर हल्दी का पौधा जमायें ।

 

दूसरे प्रकार में अत्यधिक भोजन की इच्छा; शरीर मोटा होबा; धन का आना, मगर व्यय न होना; खेत में खेती न हो पाना, अत्यधिक कामुकता, अय्याशी, पर स्त्री सम्बन्ध, पत्नी का स्थूल होना आदि है।

उपाय – प्राणायाम, व्यायाम, योगासन –करें। मुटापा नाशक दवाओं का प्रयोग करें। गरीबों को वस्त्र दान दें। छात्राओं को पुस्तक दान दें। साली को घर में न लाये।(रहने के लिए) पर स्त्री की जिम्मेदारी न उठाएं। अनाज का दान करें।

 

शनि  – पहले प्रकार में लाल रक्त कणों की कमी, शरीर का पिला पड़ना, पीलिया, कामला, उत्साह हीनता, मानसिक दुर्बलता उत्पन्न होती है। मुकदमों में हार, खेत में अनाज का बर्बाद होना। हड्डी में दर्द, नसों में दर्द, नखों की कमजोरी, बालों का झड़ना आदि। व्यवसाय में हानि, पौरुष एवं रति शक्ति की दुर्बलता होती है। जूते टूटना, वाहन खराब होना, लोह के समान में जंग लगना।

उपाय – लोहे का कड़ा, लोहे की अंगूठी, लौह तत्वों से युक्त दवाएं, लाल कपड़ा आदि प्रयुक्त करें। भैरव जी का मंत्र जाप करें और उनके मंदिर में तेल जलायें।

दूसरे प्रकार में अत्यधिक कठोरता की उत्पत्ति,  हड्डियों का बढ़ना, कड़ा होना। बालों का कड़ा होना। ढेर सारे मुकदमें लगना, शरीर में तैलीय एवं लौह तत्वों का बढ़ना, कठोरता का स्वभाव होना, आवाज कर्कश होना, सिर में चोट, नसों में तनाव, पथरी, मूत्र रोग आदि होता है।

उपाय – दूध-पानी का प्रयोग अधिक करें। लोहा-तेल दान करें। काला-नीला रंग से बचें।नीलम या लोहे की अंगूठी न पहने। ताम्बा पहनें। सूर्या नमस्कार करें। प्राणायाम करें। घर में धूप आये ऐसी व्यवस्था करें। हनुमान जी के मन्त्रों का जप करें।

 

राहु – इसमें पहले प्रकार में अवसाद, निराशा, चिंता, क्षोभ, भय की उत्पत्ति होती है। रात की नींद चली जाती है, बहुत नुक्सान होता है। आमदनी बाधित होती है। घर में झगडा-कलह होता है, इससे आत्महत्या करने का आवेग उत्पन्न होता है। जेलखाना, पागलखाना, बिजली का शॉक, पुलिस द्वारा यातना, हवालात, इसके गुण है। गर्भपात भी होता है। भूत-प्रेत प्राकोप होता है।

उपाय – चन्द्रमा को मजबूत कीजिये। सिर पर बेल पत्रों को पीसकर लेप लगायें। घिक्वार का गूदा 50 ग्राम प्रतिदिन चीनी के साथ खाएं। नील, जालीदार, काली और वर्दीनुमा कपड़ो से बचे। बिजली का काम न करें। सिर पर पिली या सगेद टोपी पहने। माता का आशीर्वाद लें।

दूसरे प्रकार में झगड़े करना, आक्रामक हो जाना, काम में उन्मत्त हो जाना, तरह-तरह के ख्याली पुलाव पकाना, अति उत्साहित हो जाना, छत टपकना, बाढ़ आना, घर में पानी की बर्बादी, अत्यधिक खर्चे, रक्त विकार, मानसिक रोग, होते है।

उपाय – लोगों को पानी – दूध मुफ्त पिलायें। सिर में तेल लागायें। जालीदार, नील, वर्दीवाले कपड़ों से बचे। नीलम न पहने। चन्द्रमा की वस्तुओं का दान करें। नदी-नाले में जौ बहायें।

 

केतु  – पैर में चोट, पैरों की गड़बड़ी, वाहन खराब होना, किसी मशीन का बंद हो जाना या खराब हो जाना, पालतू कुत्ते का मरना, सन्तान पर कष्ट, आमदनी रुकना, काम में व्यवधान, कमर दर्द, रीढ़ में दर्द।

उपाय – मन्दिर में जाएँ। मंदिर में काला-सफ़ेद सूती या उनी कपड़ा दान करें। सोना पहने। क्फ्राब इलेक्ट्रॉनिक सामान बेच दें या पानी में बहायें।

दूसरे प्रकार में अत्यधिक चंचलता, लालच, भूख, कामावेग होता है।नाचने, दौड़ने का मन करता है। वाहन आउट ऑफ़ आर्डर हो जाते है। ब्रेक फेल कर सकता है ।काम तेज़ी से चलता – बंद हो जाता है।

उपाय – तेल लगायें। लोहे का कड़ा पहने। मन्दिर में जाएँ। कुत्तों को रोटी दें। कौवों को दाना खिलायें।गाय पालें और गौमूत्र सेवन करें।

 

विशेष सूचना – ये सामान्य लक्षण और उसके उपाय है। ज्योतिष में कारण का निदान किया जाता है। जैसे – शनि खराब हो रहा है , तो क्यों? निदान उस क्यों का किया जाता है, उपाय भी उसी का होता है; परन्तु यहाँ दिए उपाय तात्कालिक राहत प्रदान करेंगे।

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